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Monday, December 13, 2010

पान्चजन्य में "सृजन से" पत्रिका के स्मृति अंक पर आधारित आलेख...

दोस्तो,
देश की बहुप्रसारित हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका "पान्चजन्य" (५ से १२ दिसंबर) में "सृजन से" पत्रिका के "स्मृति अंक" (४वां अंक) पर आधारित समीक्षात्मक आलेख संलग्न है....





Team Srujun Se

Srujan Se ke Mahila Visheshank hetu Rachna Amantran . Invitation for Contribution for Women Special Issue for Srijan se

मित्रो !
आपको प्र्स्सन्न्ता होगी कि हिंदी की मूर्धन्य पत्रिका "सृजन से "का अग्गामी अंक महिला विशेषांक होगा....
आपसे निवेदन है क़ि इस सामयिक विशेषांक हेतु महिला सम्बन्धी रचनाएँ भेजकर हमें अनुग्रहित कीजिएगा..
इस अंक का एक मकसद यह भी है क़ि उन महिलाओं को सामने लाया जाय जिन्होंने समाज के लिए काम किया किन्तु किन्ही कारण बस उन्हें वह पहचान नही मिली जिसके वे हकदार थीं इस अंक में महिला सम्बन्धी कथाएं, महिला सम्बन्धी कविताएँ, महिला सम्बन्धी लघु नाटक, महिला सम्बन्धी चित्रकला, आलेख, जीवनी, विचारोत्तेजक लेख (जैसे महिला अधिकार), भारतीय महिलाओं की Globalization में अहम भूमिका, ग्रामीण महिलाओं का आगामी दशकों में सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में नई भूमिका , विश्वीकरण में अंतरजातीय विवाह, तलाक से महिलाओं को विशेष त्रासदी , आधुनिक महिलाओं का विन विवाह के किसी मर्द के साथ में रहना का औचित्य, आधुनिकता और संस्कृति के बीच पिसतीं आधुनिक महिलाएं
जब महिलाओं को Commodity मान लिया जाता है . भारतीय गाथाओं, पुरातन साहित्य में महिलाओं क़ि भूमिका आज के साहित्य में महिलाओं को किस रूप में दर्शाया जा रहा है ?
क्या टी वी सीरियलों में महिलाओं को सही रूप से चित्रित किया जा रहा है ?

ग्रामीण महिलाओं का हिंदी फिल्मों में चरित्र चित्रं कहाँ तक सही होता रहा है ? महिला व्यंग्य चित्रकार . चित्रकार या अन्य कलाओं में महिलाओं का योगदान विभिन्न लोकबोलियों के लोक साहित्य में महिलाओं का चरित्र चित्रण भारत में महिला अधिकार आन्दोलन का इतिहास और सफलताएँ जैसे कई विषय हैं जिन पर आप अपनी रचना भेज सकते हैं.

आपसे निवेदन है क़ि आपने साहित्यिक मित्रों को सृजन से की इस पहल की सूचना दे कर हमे कृतार्थ कीजियेगा

संपर्क सूत्र
संपादिका श्रीमती मीना पांडे
M -3 M.I .G Flats, C61
Vaishnav Appartment
Shalimar garden II
Shahibabad
Ghaziabad
UP, pin 201005
Phone 9891542797

Thursday, December 2, 2010

Feedback from Ramesh Chandra Shah ji---

दोनों अंक अभी हफ्ता भर पहले ही मिले हैं। धन्यवाद। नईमा जी से बड़ा मार्मिक साक्षात्कार आपने लिया- पढ़कर बहुत अच्छा लगा।कई बातें मालूम हुई जो नहीं जानता था। दयानंद अनंत की कहानी ‘रुपयों का पेड़‘ अच्छी लगी। चेखव की सभी कहानियाँ मेरी पढ़ी हुई हैं- पता नहीं कैसे इस कहानी को पढ़े होने की याद नहीं। अद्भुत कहानी है। मेरा सुझाव है प्रत्येक अंक में ऐसी ही एक जबरदस्त कहानी विश्व-साहित्य के भण्डार से निकाल चुनकर अपने पाठकों को परोसा करें। इससे पाठकों की संवेदना का परिष्कार एवं विस्तार होगा। पत्रिका का आकर्षण भी बढ़ेगा। इस वक्त प्रवेशांक सामने नहीं है। कई चीजें पढ़ी थी, हाँ दीप जोशी पर लेख मेरे लिए नई जानकारी- आपके पाठकों के लिए भी प्रेरणास्पद था। इस तरह के प्रेरक पोट्रेट भी होने चाहिए, सही यथार्थ गौरव-बोध और आत्मविश्वास जगाने वाली सामग्री जीवनीपरक। ब्रजमोहन साह के काम को याद किया- अच्छा लगा। भाई मो0 सलीम को उनके बचपन से जानता रहा हूँ। इस अंक में हेमन्त ने यशोधर मठपाल का साक्षात्कार लिया है, पहली बार इनके बारे में जरुरी जानकारी देती सामग्री छपी देखी। हेमन्त ने सही जगहों पर कुरेदा, विस्तृत और प्रेरणादायी जीवन और कर्म के विविध पहलुओं को खोला, उनका जीवन पहाड़ के युवकों के लिये अनुकरणीय होना चाहिये। संग्रहालय उनका मेरा देखा हुआ है उसे लेकर उनकी चिन्ता वाजिफ है, कलेश उपजाती है। उत्तराखण्ड सरकार के हित में ही है, यह कि वह अविलम्ब उसके संरक्षण की व्यवस्था करे और उन्हें चिन्तामुक्त करे। यह उसका दायित्व है। सृजन परिक्रमा के अंतर्गत नितिन जोशी की यह समझबूझ भरी टिप्पणी कि “गोविन्द चन्द्र पाण्डेय अपने जीवन व्यापी अत्यन्त मूल्यवान और स्थायी महत्व के कृतत्व के लिये इस विलम्बित पदम्श्री से कहीं अधिक और उच्चतर सम्मान के अधिकारी थे”। प्रश्न चिन्ह तो लगता ही है इन चयन समितियों पर निसंदेह। मैं नहीं समझता गोविन्द चन्द्र जी के समकक्ष कोई दूसरा विद्धान उस क्षेत्र का इस देश में वर्तमान होगा। यह मैं सुनी सुनाई नहीं कहता उनके कृतित्व के समझबूझ के पक्के आधार पर कह रहा हूँ। वे अनुठे विद्धान ही नहीं अनूठे कवि और अनुवादक भी हैं- यह कितने लोग जानते हैं? स्वयं अपने पहाड़ के ही एकेडेमिक व साहित्यिक क्षेत्रों में कार्यरत कितने लोग उनके किये धरे का महत्व जानते होंगे? कितनों ने उनके वेद के संस्कृत काव्य अतुलनिय काव्यानुवादों को पड़ा होगा? मुझे कतई भरोसा नहीं है इसका। तो फिर हम किस संस्कृति की बात करते हैं? जो उसे उपजाते हैं सचमुच के सर्जक और उनवेषक हैं उसके, उन्हीं का गुण-ज्ञान नहीं बिल्कुल तो फिर हमारे जीवन की, गतिविधियों की क्या कीमत है? जो कृतज्ञ नहीं, उसकी कर्मठता भी (तथाकथित) क्या होगी? किसी आंचलिक संकीर्ण आग्रह से नहीं, बल्कि कितना सार्वदेशीक और व्यापक दृष्टि वाला संस्कार है इस अंचल से जुड़ी ऐसी विभूतियों का इसका कुछ तो बोध नई पीड़ी को हो। मुझे लगता है पहाड़ से जुड़ी साहित्यिक पत्रकारिता इस स्तर की चेतना उपजाने में सहायक हो सकती है, होना चाहिये। पुनश्चः अंक सामने नही है और स्मृति इन दिनों गड़बड़ हो जाती है। मो0 सलीम पर जो मैंने पड़ा- अत्यंत भावोत्तेजक, और पुनः ही पुरानी यादें जगाता लेख, वह आप की ही पत्रिका में पड़ा था या अन्यत्र? जहाँ तक स्मृति साथ देती है, आपके ही प्रवेशांक में पड़ा था। ठीक है ना? क्या ये अल्मोड़ा में हैं अभी? या लखनऊ में? मैं एक माह उधर रहूँगा इसीलिये पूँछ रहा हूँ। बस तो, आपके प्रयत्नों के सफलता हेतु शुभकामनायें।

पद्मश्री डा0 रमेश चन्द्र शाह,
भोपाल (म0प्र0)

Feedback from Ashok Yadav ji....

कुछ दिनों पूर्व आप के सम्पादक में निकलने वाली पत्रिका ‘‘सृजन से‘‘ मिली। अपनी एक गज़ल को उसमें देखा तो बहुत प्रसन्नता हुई। इसके लिये आप को धन्यवाद प्रेषित कर रहा हूँं। आप बधाई की पात्र हैं जो एक साहित्यिक पत्रिका निकालने का आपने सफल प्रयास किया है। हालांकि आज के दौर में साहित्यिक पत्रिका निकालना एक कठिन कार्य है लेकिन कोई कार्य पूर्ण मनोयोग एवं सकारात्मक सोच के साथ किया जाये तो सफलता अवश्य मिलती है। आपको पत्रिका की उन्नति के लिये हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित कर रहा हूँ।

अशोक यादव
इटावा (उ.प्र.)

Feedback from Sharafat Ali Khan ji..

‘सृजन से....‘ जु0सि0 2010 अंक मिला पत्रिका अपने पहले वर्ष में ही सामग्री और साजसज्जा के साथ हिंदी की श्रेष्ठ पत्रिकाओं की कतार में खड़ी नजर आने लगी है। साहित्य की सभी विधाओं से सुसज्जित पत्रिका निःसन्देह साहित्य जगत में अपना अलग स्थान बनाए रखेगी, ऐसी कामना है, दादर पुल का बच्चा -बी. बीट्ठल ने जीजीविषा की नयी परिभाषा से अकाग्र कराया। संघर्ष व्यक्ति को कैसे निखारता है उसका ज्वलंत उदाहरण है बी. बीट्ठल।


शराफत अली खान
बरेली (उत्तर प्रदेश)

Feedback from Meenu Joshi...

‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका के प्रथम एवं द्वितीय दोनों अंक प्राप्त हुए। पढ़कर ऐसा लगा कि काफी लम्बे समयान्तराल के बाद हिन्दी की स्तरीय पत्रिका पढ़ी, साहित्य प्रेमियों के लिए यह एक शुभ संकेत है। साहित्य मर्मज्ञों के साथ नव सृजक भी इस पत्रिका में अपना स्थान सुरक्षित देखकर काफी उत्साहित एवं प्रेरित होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। लोकसंस्कृति, साहित्य, कला, रंगमंच का इतना सुन्दर समागम पत्रिका के उज्जवल भविष्य को परिलक्षित करता है। संपादकीय में मीना पाण्डे जी का ‘एक जोडी ताजा आँखों का लोभ’ नवीन पीढ़ी व नव सृजनकर्ताओं के लिए अवश्य ही प्रेरणा का कार्य करेगा। पत्रिका के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए संपादक मंडल को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ। साथ ही सृजन एवं पठन के माध्यम से पत्रिका से जुड़ना चाहती हूँ।

मीनू जोशी
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

Feedback from Ashok 'Anjum'...

“सृजन से” का जुलाई-सितम्बर अंक पाया प्रसन्नता हुई। मृदुला गर्ग जी का साक्षात्कार अंक की उपलब्धि है। श्री आलोक शुक्ल की कविता ‘डेमोक्रेसी’ प्रजातंत्र का बड़ा मार्मिक चित्रण है। अन्य रचनाएं भी मार्मिक हैं। गद्य पद्य पर भारी लगा।

अशोक ‘अंजुम’
अलीगढ़ (उ0प्र0)

Feedback from Aacharya Darshney Lokesh Ji....

‘सृजन से‘ के अवलोकनार्थ प्रेषित अंक मिला धन्यवाद। पृष्ठ 43 पर ‘‘पहचान एक सही तिथि पत्रक की” जो कि मेरा ही लेख है, को प्रकाशित देखकर अति प्रसन्नता हुई, बहुत कम सम्पादक हैं जो कि मेरे लेख प्रकाशित करने का साहस रखते हैं। मैं धारा के विपरीत बहने की प्रचलन के विपरीत चलने की किन्तु सत्यार्थ और यथार्थ के पक्ष में अन्वेषण की बात करता हँू। आपका मार्ग सत्य के पक्ष में अधिक ही गुरूतर और प्रशंसनीय बनता है। मुझे अब उम्मीद करनी चाहिए कि आप जैसे लोग वैचारिक क्रान्त्ति के इस प्रयास में आगे ही रहंेगे। ज्योतिष की गभ्भीर त्रुटियों को दूर कर एक सत्य शुद्ध ‘‘पंचांग‘‘ दे पाने के सर्वथा अद्वितीय एवं अन्यतम प्रयास का नाम है ‘‘श्री मोहन कृति आर्ष तिथी पत्रक‘‘। समाज और संस्कृति के हित में आचार्य दार्शनेय लोकेश आपका उतना ही अधिक आभारी रहेगा जितना ही अधिक आपका प्रयास इस वैदिक तिथि पत्रक की सामाजिक प्रतिष्ठा करने में सहयोगी सिद्ध होगा। सत्य ये है कि भारत की धरती में ‘पंचांग’ नाम से जो भी कुछ प्रकाशित किया जा रहा है वह सब यथार्थ और सत्य से अलग केवल भ्रमात्मक प्रकाशन हैं। फलित ज्योतिष के लिए जिस भचक्र को लिया गया है वह बृहमाण्ड में कहीं नहीं है। कुल मिला कर कभी तो लगता है ज्योतिषी क्या उस व्यक्ति को तो नहीं कहा जाता है जो कि ज्योतिष के यथार्थ को जानता ही नहीं है। ये बातें कटुता हो सकती हैं किन्तु असत्य नहीं। संलग्न पत्रकों का ठीक अवलोकन करने पर यही कुछ आपको भी स्पष्ट हो जायेगा।


आचार्य दार्शनेय लोकेश
ग्रेटर नौएडा (उ0प्र0)

Feedback from Prakash Pant Ji....

मैंने त्रैमासिक पत्रिका “सृजन से...” का अवलोकन किया। पत्रिका में नाम के अनुरूप उच्चकोटी के साहित्य के द्वारा मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास किया गया है। पत्रिका में मानव जीवन के विभिन्न रंगो का समावेश करते हुए सम्पादक मण्डल ने साहित्य से जुड़े एवं सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों के लिए ज्ञानार्जन रूपी महल के निर्माण में ईंट लगाकर अपना योगदान देने का प्रयास किया है। “सृजन से...” उत्तराखण्ड की संस्कृति, सांस्कृतिक परम्पराओं तथा धरोहर को आम जनमानस तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभायेगी ऐसा मेरा मानना है। मुझे विश्वास है कि पत्रिका “सृजन से...” बुद्धिजीवियों के देश/राज्यों के सम-सामयिक विषयों पर लेख, विचार तथा सुझाव प्रकाशित कर उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए समाज में अपनी एक पहचान बनाने में सफल होगी। सम्पादक मण्डल को पत्रिका के सफल सम्पादन हेतु मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं।

प्रकाश पन्त, (मंत्री)
उत्तराखंड विधानसभा

Feedback from Bhagwat Prasad Misra 'Niyaj' Ji....

‘सृजन से‘‘ का जुलाई-सितस्बर 2010 अंक प्राप्त हुआ। साहित्य के क्षेत्र में इस नई पत्रिका का स्वागत है। स्त्री विमर्श से सम्बन्धित मृदुला गर्ग जी के उठाये मुद्दे विचारणीय हैं। आज नारी सेसम्बन्धित हमारा समाज हमारी संस्कृति और हमारा साहित्य संक्रमणकाल से गुजर रहा है। इस सब में नारी की भूमिका क्या और कितनी हैं, इसका निर्णय स्वयं नारी को ही करना होगा। इस संबंध में मुझे एक पौराणिक प्रसंग याद आता है। सती अनुसूया की तपस्या से घबराकर उनकी परीक्षा लेने हमारे त्रिदेव-ब्रहमा, विष्णु और शिव पहुँचे और उनसे निर्वस्त्र होकर उनके सामने उपस्थित होने को कहा। अनुसूया ने अपनी तपस्या के बल पर उन्हें हंसते खेलते शिशुओं में बदल दिया और मातृस्वरूप उन्हें निर्वस्त्र रिझाने लगीं। त्रिदेवों ने उनसे क्षमा मांगी और माता के रूप में उनका नमन किया। तो मीना जी हम आज भी जहाँ इस शक्ति के दर्शन करते हैं। मस्तक अपने आप झुक जाता है। पत्रिका के सभी स्तम्भ अत्यंत उपयोगी और रोचक हैं। आप यदि चाहें तो अध्यात्म पर भी एक स्तत्भ रख सकती है.

भागवत प्रसाद मिश्र ‘नियाज’
अहमदाबाद (गुजरात)

Feedback from Nandan Singh Rawat Ji....

कोटद्वार महोत्सव फरवरी 2010 के अवसर पर प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना विदुषी दीपा जोशी जी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत, करने कोटद्वार पहुंची थी उसी दौरान उन्ही के माध्यम से ‘‘सृजन सें‘‘ त्रैमासिक पत्रिका मुझे प्राप्त हुई थी। सबसे पहले मैं श्रीमती दीपा जोशी जी व श्री हेमन्त जोशी जी का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ जिन्हांेने मुझे सामाजिक सरोकारांे से आम जन को सम्प्रेरित करने में अति सक्षम साहित्यिक व सांस्कृतिक पत्रिका ‘सृजन से’ से अवगत कराया। वास्तव में पत्रिका के रूप में यह अनोखा सृजन है। कवर पृष्ठ कागज व छपाई के आधार पर जहाँ पत्रिका का भौतिक कलेवर शसक्त हुआ है वही श्रेणेत्तर कलाकारांे, साहित्यकारों व विभिन्न विषय के विद्वानों की श्रेष्ठ रचनाओं से पत्रिका का बौद्धिक कलेवर भी शसक्त हुआ है। आवरण के रूप में साहित्य और कला का आधार पाकर पत्रिका निश्चित रूप से अपने निर्धारित उद्वेश्य को प्राप्त करने मे सफल सिद्ध होगी ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।

अपनी शतसः हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।


नन्दन सिंह रावत
कोटद्वार (उत्तराखंड)

Wednesday, December 1, 2010

Feedback from Sunil Gajjani

''सृजन से '' पत्रिका का अंक ४ वां अंक मुझे प्राप्त हुआ, अगर इसकी अंक संख्या पे गौर नहीं किया जाए तो लगता ही नहीं कि '' सृजन से '' मात्र चौथा अंक नहीं ४०० वाँ अंक है ये , साहित्यिक दृष्टी से भी देखे तो ये अगर निरंतर यू ही अपना सार्थक '' साहित्यक रूप में '' प्रदान करती रही तो ''सृजन से'' सीघ्र ही साहित्यक की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में शामिल होगी, ये हमारी कामना है. हां, एक अधूरापन सा लगा कि अगर रचनाकार का साहित्यक परिचय के साथ-साथ पूरा संपर्क सूत्र भी प्रदान करे तो रचना के प्रति अपना साधुवाद भी उनको प्रेषित किया जा सके. अन्यथा भी सुंदर है, पुनः '' सृजन से ' के उज्जवल भविष्य के लिए हार्दिक

शुभकामनाये .
सादर !

Sunil Gajjani
President Buniyad Sahitya & Kala Sansthan, Bikaner
Bikaner (Raj.)

Sunday, November 14, 2010

Feedback From L.M. Pandey ji (Retd. DIG- SSB)

‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका का तीसरा अंक मिला, धन्यवाद इस पत्रिका के मिलने पर एक आश्चर्य मिश्रित आनन्द की अनुभूति हुई। कुछ देर तक सोचता रहा, मेरा पता इस पत्रिका तक किसने पहुंचाया होगा? पत्रिका खोलने पर दिनेश जी का ‘‘साक्षात्कार देखते ही गुत्थी सुलझ गई। उनके द्वारा ही आप तक मेरा पता पहुचा होगा श्री दिनेश जी मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं, जिन्हांेने मुझे भी सही रास्ता दिखलाया। आपकी पत्रिका के संरक्षक मंडल के सदस्यों में से दो सदस्य सर्वश्री डा0 मठपाल वं नईमा जी से भी मैं भलीभांति परिचित हूँ। अब उन्हें याद हो अथवा नहीं, मुलाकातें पुरानी हो गयी हैं। नईमा जी का नाम देखकर ही मुझे अपने बचपन के सांस्कृतिक क्रियाकलापों की स्मृति लौट आई, आपको भी अपने बचपन की एक झलक से परिचित कराने के लिए एक प्रति संलग्न कर भेज रहा हूँ। ‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका समय की मांग के अनुरूप साहित्यिक सौष्ठव एवं सहजता से उच्च आदर्शों के प्राप्ति हेतु रची गयी लगती है। उच्च कोटि के लेखकों, कवियों, रचनाकारों की रचनाओं से पत्रिका का कलेवर सजाया गया है जिसमें हिन्दी साहित्य के सभी अंगों का समावेश बड़े सुरूचिपूर्ण ढंग से किया गया है। आलेख, कहानी, कविता, साक्षात्कार, कला समीक्षा, समालोचना आदि 52 पृष्ठों की इस पत्रिका में ‘‘गागर में मोतियों भरा सागर‘‘ लगता है, जिसे आरम्भ से अंत तक पूरा पढ़ने को जी करता है। मैने इस पत्रिका को एक ही बार में सम्पूर्ण पढ़ डाला। हर रचना की इसमे अपनी विशेषता है। कहानियां बड़ी रोचक, कविताएं सारगर्भित, आलेख बड़े सुन्दर हैं। दिनेश जी द्वारा लिया गया मृदुला जी का साक्षात्कार उच्च कोटि का है। मैं इसका दूसरा भाग भी पढ़ना चाहूँगा। सम्पादकीय कुछ अलग होने से उसमें विशेष सुगन्ध है। निष्ठा पूर्वक किया गया कार्य अपना निर्धारित लक्ष्य अवश्य प्राप्त करता है। मैं पत्रिका के लिए बधाई एवं अपनी हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित करता हूॅ।

‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका की बेल देश-विदेश में दूर-दूर तक फैले, फले, फूले, तथा इसकी महक से सभी आनन्दित हों। यही मेरा आशीर्वाद है।

एल. एम. पाण्डे
हल्द्वानी (उत्तराखंड)

Feedback From Bhagwan Das Jain ji

आपके द्वारा प्रेषित व सुसंपादित त्रैमासिक पत्रिका ‘सृजन से‘ यथासमय प्राप्त हुई। साभार धन्यवाद! बड़े मनोयोग से ‘सृजन से‘ के नवीनतम जुलाई-सितंबर 2010 अंक का पर्यवेक्षण किया! मैं सुखद-आश्चर्य से विमुग्ध हूँ कि अभी तो पत्रिका प्रथम वर्ष के तीसरे सोपान (अंक) तक ही पहुँची है अर्थात् वह शैशवावस्था में है फिर भी अन्तर्बाह्म दोनों दृष्टियों से कितनी परिपुष्ट एवम् नयनाभिराम है, यानि वही कहावत चरितार्थ होती है कि- ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ पाठकीय सार्थक सुझावों का निरंतर क्रियान्वयन करते हुए शीघ्र ही एक दिन पत्रिका बुलंदी पर प्रतिष्ठित होगी। ‘सृजन से‘ की सृजनात्मक चेतना से अभिभूत हूँ। ‘आज़ादी के मायने‘ शीर्षक अपने संपादकीय में आपने यथार्थ ही कहा है कि ‘सिर्फ तानाशाह बदल जाते हैं, गुलामी की सूरत वही रहती है आज़ादी के मायने नहीं बदलते।’ पत्रिका में कुछ बोधप्रद हैं-जैसे ‘लक्ष्य से जीत तक’ (कवि कुलवंत सिंह), ‘पेड़ हमारे जीवन साथी’ (मकबूल वाजिद), ‘शोर‘ शीर्षक संक्षिप्त एकांकी (शराफ़त व अली खान) तो बहुत कुछ ज्ञान वर्द्धक एवं विचारोत्तेजक भी है, यथा-दादर पुल का बच्चा-बी विद्वल (मनमोहन सरल) और यूँ हुई रचना श्री नन्दा स्तुति की (हेमन्त जोशी) और कुछ विशुद्ध साहित्यिक सामग्री भी अंक में मौजूद है- कथा क्षेत्र के बहुश्रुत व बहुआयामी साहित्यकार भीष्म साहनी पर सुश्री किरन पाण्डे का आलेख अच्छा लगा। सुश्री नीतू चौधरी के लेख ‘अवध की आत्मा वाजिदअली शाह‘ ने भी मुझे काफी प्रभावित किया। डॉ. सौमित्र शर्मा का आलेख ‘रामकाव्य के मर्मज्ञ‘ डॉ रमानाथ त्रिपाठी तथा श्री दिनेश द्विवेदी द्वारा लिया गया प्रतिष्ठित कथा लेखिका एवं नारी विमर्श की सकारात्मक सोच की पक्षघर श्रीमती मृदुला गर्ग का साक्षात्कार (पहला भाग) ‘सृजन से‘ की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं जो अंक को संग्रहणीय बनाती हैं। कविताएँ अच्छी हैं। दोनों ग़ज़लें (श्री अंबर खरबंदा, श्री अशोक यादव) बहुत अच्छी और काबिलेदाद हैं। कहानियाँ पढ़ना अभी शेष है, क्या कहूँ? आपका चयन है अच्छी ही होंगी। पढूँगा अवश्य। ‘सृजन परिक्रमा‘ स्तंभ के अंतर्गत प्रकाशित समाचार भी ज्ञातव्य हैं। इसे जारी रखिएगा। आवरण-4 पर कमाल खावर के प्राकृतिक दृश्यों के फोटोग्राफ रमणीय हैं तथा अंक के भीतर बिखरे सूचक रेखाचित्रों के लिए डॉभूष् ाण साह साधुवाद के पात्र हैं। आपके संनिष्ठ समर्पण एवं जुझारू संघर्ष के मद्देनज़र ‘सृजन से‘ का प्रचार-प्रसार निर्विवाद है। आपका विलक्षण संपादकत्व देश के गुमराह युवा सर्जकों में नई सृजनात्मक चेतना जगाए-यही आपके प्रति मेरी हार्दिक मंगल कामना है।


भगवान दास जैन
अहमदाबाद (गुजरात)

Thursday, November 4, 2010

Monday, October 25, 2010

अक्तूबर-दिसम्बर २०१० अंक की विशेष सामग्री....

साहित्य आलेख: १. दलित विमर्श पर ओम प्रकाश वाल्मिकि जी का आलेख|
२. मनोहर श्याम जोशी जी पर पंकज बिष्ट जी का लेख।
३. गिरीश तिवारी जी "गिर्दा’ पर सुप्रसिद्व रंगकृमी डा० सुवर्ण रावत का संस्मरण।
४. जन-मन-गन के रचियेता रविन्द्र नाथ ठाकुर जी पर डा० रमानाथ त्रिपाठी जी का आलेख।
. गिरीश तिवारी जी "गिर्दा’ पर हेमंत जोशी जी लेख।
. लोक-कलाकार संघ संस्था पर ललित मोहन पान्डेय जी का संस्मरण।
चित्रकला: सुप्रसिद्व चित्रकार मौलाराम तोमर जी पर डां० नन्द किशोर ढौढियाल जी का विशेष आलेख तथा प्रतिष्ठित व युवा चित्रकारों जैसे स्व० श्री इफ़्तिकार खान, श्री बी० मोहन नेगी जी, राजू मिश्रा व डां० भूषण साहू इत्यादी की कृतियां इस अंक मे देखी जा सकती हैं|
रंगमंच: सुप्रख्यात नाटककार विलिअम शेक्सपीयर जी के संदर्भ में डा० योगेन्द्र चौबे जी का आलेख।
कहानी- सुप्रसिद्व कथाकार शेखर जोशी जी की कहानी|
साक्षात्कार- प्रख्यात कथाकार मृदुला गर्ग जी (भाग-२) से उनके सहित्य व स्त्री विमर्श पर दिनेश द्विवेदी जी की लम्बी बातचीत के अंश|
वातायन स्तम्भ- प्रख्यात गज़लकार दुष्यंत कुमार जी पर डा० शिव ओम अम्बर जी का आलेख|
लोक / संस्कृति: छत्तीसगढ के करमा गीतों पर डां भरत पटेल जी का लेख |
गज़लें- स्व० डा० उर्मीलेश कुमार व कमल किशोर ’श्रमिक’
कवितायें/गीत- डा० रमानाथ त्रिपाठी व माधवाशरण जी द्वारा रविन्द्र नाथ ठाकुर जी के गीतों का हिन्दी रुपान्तरण, बी० मोहन नेगी जी के रेखांकन में जनकवि गिरीश तिवारी "गिर्दा" के गीतों का उल्लेख व पूरन चन्द्र कान्डपाल जी, चन्द्रशेखर पंत जी की कवितायें|

इसके साथ ही कई नये व प्रतिष्ठित रचनाकारों जैसे मीनु जोशी जी (अल्मोडा), रचना श्रीवास्तव (यू० एस० ए०), निशा बहुगुणा (लख्ननऊ), सोनी पंत (स्यल्दे-ऊत्तराखंड) आदि की रचनायें/लेख इस अंक मे देखे जा सकते हैं|

सभी साहित्यकारों,रचनाकारों व कलाकारों से निवेदन है कि पत्रिका के अगले अंको के लिये स्तरीय सामग्री उपलब्ध करायें।

पता: एम-3, सी-61, वैष्णव अपार्टमेन्ट,
शालीमार गार्डन-2, साहिबाबाद,
गाज़ियाबाद (उ० प्र०)
पिन कोड -२०१००५

Monday, September 27, 2010

feedback from JP dangwal ji

सृजन से का जुलाई-सितम्बर अंक मिला, पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई।

चित्राकला स्तंभ में संघर्षशील, महान मूर्तिकार वाडगेलवार विट्ठल का जीवन परिचय अत्यंत प्रभावकारी लगा। लेखक और कलाकार संवेदनशील होते हैं और अपनी रचना में प्रेम का साकार स्वरूप प्रतिबिम्बित करना ही उनका लक्ष्य होता है। श्री विट्ठल जी ने अपना वह स्वप्न तो साकर किया लेकिन स्वयं की कृतियों का प्रिय पत्नी प्रभा जी की कृतियों से प्रतिस्पर्धा न हो यह सोचकर उनके हित में उन्होंने अपनी कृतियों की प्रदर्शनी ही बंद कर दीं। प्रेम का ऐसा अद्भुत उदाहरण बहुत कम देखने, सुनने और पढ़ने को मिलता है। श्री मनमोहन सरल जी को आदरणीय श्री विट्ठल जी का यह मनोरम जीवन परिचय लिखने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

किरण पांडे जी का महान साहित्यकार श्री भीष्म साहनी जी पर लेख अत्यन्त सारगर्भित लगा। भीष्म साहनी उस कोटि के साहित्यकार हैं जिन्होंने तिल तिल जल कर अपनी आभा से हिन्दी साहित्य जगत को आलोकित करने में विशेष योगदान दिया है। साथ ही दिनेश जी का साहित्यकार मुदुला गर्ग जी से विस्तृत साक्षातकार लेखिका के मन में झांकने का अवसर देता है। नीतू चौधरी का अवध की आत्मा वाजिद अली शाह पर लेख भारत के अंतिम बादशाह की याद तरोताजा करता है।

राम काव्य के मर्मज्ञ डाक्टर रमानाथ त्रिपाठी पर डा. साौमित्रा का लेख त्रिपाठी जी की राम काव्य पर गहरी पकड़ और उनके ज्ञान को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है।

पत्रिका में छपी सभी कहानियां, रूपांतर और कविताएं रुचिकर लगीं। चेतन पांडे जी की, चंद्रशेखर जी के काव्य संग्रह अरी सुनयना की झलक अति प्रिय लगी, पुस्तक प्राप्ति का पता बताने का कष्ट करें, पुस्तक खरीद कर पढ़ना चाहूंगा। संपादक महोदया आपकी कविता पहली बार पढ़ने को मिली। कब आओगे पढ़कर आप में मुझे महादेवी जी की झलक देखने को मिली। आशा है कि आप इस झलक को वास्तविक स्वरूप देने का प्रयत्न करेंगी।

पत्रिका में सृजन परिक्रमा आरम्भ कर आपने पत्रिका की गरिमा और भी बढ़ा दी है।

मेरे छात्रा जीवन में डी,ए,वी, कौलेज में श्री उर्मिल थपलियाल एक लोकप्रिय युवा नेता रहे हैं। मेरा उनसे व्यक्तिगत परिचय नहीं रहा है लेकिन उनमें एक सफल साहित्यकार और एक सफल नेता की छवि मेरे मन में रही है। वह राजनीति से कैसे विमुख हो गए यह जानना चाहूंगा। आपकी पत्रिका में इस विषय पर लेख पढ़ने को मिले तो रुचिकर होगा।

इसके साथ ही आपकी सुव्यवस्थित, सुशोभित, सुसुसंस्कृत, सुसंयोजित, सुसंपादित साहित्यिक पत्रिका सृजन से के मंगल मय भविष्य के लिए हार्दिक

शुभकामनाएं।

जय प्रकाश डंगवाल।


feedback from puran kandpal ji.

'सृजन से ' का अंक

सृजन

से का अंक - मेरे सामने है. पिछले दोनों अंक भी पास ही

हैं

. पत्रिका में बहुकोणीय निखार रहा है. इस अंक में किरन

पाण्डेय

का भीष्म साहनी पर आलेख एक संघर्षशील रचनाकार का

स्मरण

करता है. 'लक्ष्य से जीत तक' कुलवंत सिंह का लेख उर्जावान

है

. वातायन में 'अम्बर' का सन्देश बस यही कहता है '.माँ से बढ़कर

कौन

'.?

मृदुला

गर्ग का दिनेश द्विवेदी द्वारा साक्षात्कार हिंदी लेखकों और

आलोचकों

, को बहुत कुछ संदेश देता है. मेरे विचार से लेखन एक

साधना

है. निःसंदेह बेहतर लेखन अपने माहौल में रहकर ही सृजित

होता

है. दिनेश द्विवेदी के प्रश्न और मृदुला जी के उत्तर कई प्रकार से

एक

आम पाठक की जिज्ञासा को शांत करते हैं. हमने गाँधी की 'शांति'

और

भगत सिंह की 'क्रांति' दोनों से ही किनारा कर लिया है. भ्रष्टाचार

को

उखाड़ने की क्रांति के बारे में अब कोई नहीं सोचता. अब तो

भ्रष्टाचार

सहने और उसकी अनदेखी करने की एक आदत बन गयी है.

हेमंत

जोशी ने ब्रिजेन्द्र लाल शाह रचित साहित्य की जानकारी

उपलब्ध

करा के शाह जी की स्मृति जगायी है. कविता 'कब आओगे'

में

'गुम सुम' की जगह 'नैन बिछाए बैठी ' मीना', कब आओगे गीत

बुलाते

' के लिए कवियत्री से शब्द बदलाव का अनुरोध करूँगा.

सृजन

से की सभी सामग्री पठनीय एवं सराहनीय है. नन्हा सृजन पृष्ठ

में

बच्चों के लिए सामान्य ज्ञान के दस-बारह प्रश्न पूछे जा सकते हैं और

उसी

के अंत में उनके उत्तर दिए जा सकते हैं. उदाहरणअर्थ -फूलों की घाटी

कहाँ

है ? सभी विषयों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं. इससे पत्रिका बच्चों

को

भी पाठकों के समूह में शामिल करेगी.

पूरन

चन्द्र कांडपाल

Monday, September 13, 2010

Some More Feedback............................

1....
प्रिय संपादकजी
सृजन से का जुलाय अंक मिला। इस अंक में सभी लेख बहुत अच्छे लगे।
इसके लिए आपको बधाई। मेरा सु़झाव है कि यहां के पुरातत्व एवं विकास के ऊपर भी कुछ लेख होने चाहिये।
आज ही गिरदा का देहान्त हो गया है। अब अगला अंक आप शायद उनको समर्पित करना चाहें।
मुझे विश्वास है कि आपके नेतृत्व में सृजन से का उत्तरोत्तर विकास होता जाएगा।

शुभकामनाओं सहित
डा. धर्मपाल अग्रवाल


2...

'Srujanse' ka tisra ank mila. Sampadak, Pramarshdata, Sanrakshakmandal ke sath 'Srujan se' ki puri team ko mubarakbad ! Kala,Sahitya,Sanskriti ke anek vidhaon ke rango se saji-sanwari sabhi krtiyan achhi lagi. Visheshkar- Sharafat Ali Khan, Manmohan Saral, Kewal Tiwari, Dhan Singh Mehata'Anjan' ke kramashah: Shor, Dadur Pul Ka Bachha- B. Vitthaall, Gauraiya Ka Pankh, Bharose Ka Aadami. Kiran Pande, Dr. Saumitra Sharma aur Dinesh Diwedi ne Bhishm Sahini, Dr. Ramnath Tripathi, evam Mridula Garg ke aanek pahuluon ko chhuwa. Kavitayen, Gzalein, Abhivanjanayein ruchikar lagein. 'Srujan Nibandh' ke sath 'Srujan Parikrama' ke tahat bahut kuchh pata chala.' Nanha Srujan' nam se chhote bachhon ko bhi jagah mii, bahut aachha laga. Ismein Aania aur Aania Kaushik ki Kakshaon ka pata nahein chal paya- ye dono ek hi hain ya alag-alag? Aakhir mein yah bhi achha laga ki 'Srujan se' anavashyak vigyapano se pati..bhari nahi thi.- Shubhkamanein!

--Dr. Suwarn Rawat,
NSD Alumnus,One of the founders of NSD TIE Co., New Delhi
( Has been awarded PhD degree entitled "Theatre : Its significance in Education" )


3...
सृजन से का तीसरा अंक प्राप्त हुआ । मार्मिक विषयों, रोचक जानकारियों, मनोरंजन एवं ज्ञान से भरपूर पत्रिका का यह अंक हृदय स्पर्शी है । कवि कुलवंत सिंह जी का ‘लक्ष्य से जीत तक‘ लेख नित तौर पर सभी को विशेष रूप से युवा वर्ग को प्रोत्साहित एवं लाभान्वित करने वाला लेख है। हरीश बडोला जी की कविता ‘मां! मुझे बताओ‘ हृदय को छू जाती है ।

आचार्य दार्षनेय लोकेश जी द्वारा ज्योतिष की दिशा में एक जो सार्थक प्रयास किया गया है, उसे जारी रखने हेतु अनुरोध है । अम्बर जी का ‘मां है तो सारा घर ठाकुरद्वारा है‘ लेख में उल्लिखित दो पंक्तियां ‘किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई‘ तो दिल में ही उतर आती हैं। पत्रिका को अत्यधिक रोचक एवं स्तरीय बनाने हेतु हास्य व्यंग एवं भारतीय लोक संस्कृतियों की झलक भी प्रस्तुत किये जाने की आवश्यकता महसूश ही जा रही है । विषय वस्तु को देखते हुए पत्रिका के सफल भविश्य की आशा है ।

शुभ कामनाओं के सांथ

कैलाश चन्द्र भट्ट
एम-351, सरोजिनी नगर
नई दिल्ली - 11023

Srujan se- Feedback From JP Dangwal ji

Dear Srijan Se Team,


Undoubtedly 'Srijan Se' is a high class literary magazine of Hindi. I have gone through all the issues of srijan Se and found the contents of class taste and standard.


I see great potential and capability in the editor and her board to carry on never ending publishing of the magazine without compromising with the standard and quality of the magazine.


I wish bright future for Srijan Se free from politics and unnecessary controversial issues.


Always a well wisher
Jai Prakash Dangwal

Srujan se- Feedback from T.D Pandey Ji....

‘‘सृजन से‘‘‘ पत्रिका के तीन अंक पढ़े । पत्रिका में स्तरीय, प्रबुद्ध लेखकों के साथ नये रचनाकारों का भी समावेष हुआ है। पत्रिका हो, समाचार पत्र या मीडिया की कोई भी विधा, यहॉ तक कि पुस्तकों के लेखक अथवा कवि उसके सृजक तथा सम्पादक पर निर्भर करते है। सम्पादक कैसा है व किस अवधारणा अथवा लालच से पत्रकारिता के क्षेत्र में आया है, कदाचित इन प्रष्नों का उत्तर ही पत्रकारिता का भविश्य हुआ करता है।

पत्रकारिता का पावनतम कर्म पूर्ण निश्ठा, सत्यता एवं पारदर्षिता से देष, समाज व संस्कृति की रक्षा करना है । कलम की नोक से सृजनात्मक विचारों को अभिव्यक्ति देना, उत्कृश्ट कार्य करने वालों को महत्व देना साथ ही दुश्कर्म वालों को हतोत्साहित करना पत्रकारिता का ही कार्य है। इस उददेष्य की पूर्ति के लिए पत्रकारिता से जुंडे़ लोगों का चरित्र अति पावन, विषाल व निश्पक्ष होना जरूरी होता है। प्रायः देखने में आता है कि अधिकांष पत्रकार काली कमाई को ठिकाने लगाने, छदम नाम कमाने या फिर पत्रकारिता के माध्यम से फूहड़ विज्ञापन व सरकारी विज्ञापन बटोर कर सरकार के काले कारनामों पर पर्दा डाल कर और अधिक कमाने के उददेष्य से पत्रकारिता केा ही कलंकित करने लगते हैं व इसी प्रयास में आसमान छू जाने के बाद मटियामेट भी हो जाते हैं। पत्रकारिता के छदम व पीतकर्म से आज देष व समाज में जहॉ फिल्मी नायक व नायिकाएॅ, ्िरककेट खिलाड़ी, ब्यूटी क्वीन तथा विज्ञापनी पुरूश, बालाएॅ वक्त के भगवान बने हुए हैं वही उत्कृश्ट कर्म व सोच देने वाले वैज्ञानिक, विचारक, चिंतक तथा प्रबुद्ध वर्ग के पदाधिकारी, कलाकार, संगीतज्ञ, कवि तथा लेखक उपेक्षित हैं। इन सभी कसौटियों एवं चुनौतियों पर ‘‘सृजन से,,,‘‘ पत्रिका को आकार लेना है।

- तारा दत्त पाण्डे ‘‘अधीर‘‘
मानस विहार बिठोरिया न0-1
हल्द्वानी नैनीताल उत्तराखण्ड

Tuesday, August 10, 2010

4th Edition...................

Feedback from JP Dangwal ji

सृजन से” के दो अंक भेजने के लिए धन्यवाद। हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिकाएं धर्म युग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के प्रकाशन से बड़े बड़े प्रकाशक जुड़े हुए थे जिनके पास न तो धनाभाव था और न ही विज्ञापनों की कमी। लेकिन व्यवसायिक दृष्टिकोण से आर्थिक लाभ न होने के कारण दोनो उच्च कोटि की पत्रिकाएं बुरी तरह लड़खड़ा गईं। यह एक कटु सत्य है कि आधुनिक परिवेश में हिन्दी की एक मनोरम पत्रिका निकालना एक सहज कार्य नहीं है। आपने एवं आपके यहयोगियों ने अपने सामर्थ्य से “सृजन से” का प्रकाशन आरम्भ कर इस दिशा में एक साहसिक और सराहनीय
कार्य किया है।

सृजन से
” अंक जनवरी-मार्च, 2010 के संपादकीय में मीना पाण्डे जी की “सृजन से" की प्रथम दस्तक पाठकों के द्वार पर” एक सशत्त, सुरूचि पूर्ण और ठोस दस्तक लगी। मेरी यह सम्मति है कि यह सुन्दर दस्तक “सुजन से” के प्रत्येक अंक में बड़े आकार में “नव वर्ष की हर बेला पर” के स्थान पर “इस वर्ष की हर बेला पर” के साथ प्रकाशित हो।

श्री के. पाण्डे जी एवं श्री महेश चन्द्र पाण्डे जी के लेख प्रथम और द्वितीय अंक में बड़े ही सारगरभित एवं विद्वतापूर्ण लगे।

मेरे प्रिय लेखक श्री इला चंद्र जोशी जी का पहाप्राण कवि निराला पर रोचक व अनूठा संस्मरण मन को आल्हादित कर गया। साथ ही उस महान कवि का अपने आक्रोश पर अचम्भित संतुलन जिसने श्री इला चंद्र जोशी जी को उनकी चपेट से बचा लिया हृदय को गुदगुदा गया।

पद्मश्री डा. यशोधर मठपाल जी से जोशी जी के साक्षातकार में डा. मठपाल जी की अभिव्यक्ति कि उनके लिए कला ईश्वर प्राप्ति का साधन है यदि हमें एक कला महर्षि का बोध कराता है तो महान लेखिका अमृता प्रीतम जी की अभिव्यक्ति कि “सच और परमात्मा को मैंने प्रेम के साथ साए की तरह आते हुए देखा है।” सच और ईश्वर का प्रेम में निरूपण कराता है।

पत्रिका में छपी कहानियां, कविताएं, गजलें और गीत, सब रुचिकर लगे। और सबसे अच्छी बात यह लगी कि पत्रिका में भाषा दोष नगण्य देखने को मिला जिसका श्रेय संपादक मंडल को जाता है।

कुल मिलाकर मुझे “सृजन से” एक उत्तम साहित्यिक पत्रिका लगी जिससे आशा की जा सकती है कि उसमें निरन्तर परिमार्जन होता रहेगा और साहित्यिक गुणवत्ता बढ़ती रहेगी।



सदैव शुभाकांक्षी
जय प्रकाश डंगवाल।


About SRUJAN Se..................

"सृजन से" साहित्य व कलात्मक विधाओं की एक अग्रणीय त्रैमासिक पत्रिका है। जिसका उद्देश्य सभी सृजनात्मक विधाओं को न केवल एक धरातल पर उकेर लाना है वरन उससे भी महत्वपूर्ण इन कलाओं की नयी पोंध के लिये भरपुर खाद पानी जुटाकर स्तरीय सृजन को प्रोत्साहन देना है। यह उत्तराखंड के कला सहित्य के साथ ही हिन्दी साहित्य, रंगमंच, चित्रकला, नृत्य संगीत तथा कला जगत की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी कला प्रेमीयों तक लाने का प्रयास है।


"सृजन से" का यह कार्य मैग्ससे पुरुस्कार से सम्मानित पदम श्री दीप जोशी जी, ख्याति प्राप्त चित्रकार पदम श्री डां० यशोधर मठपाल जी, रंगमंच की वरिष्ठ हस्ती नईमा खान उप्रेती जी व गाज़ियाबाद के अपर जिला सुचना अधिकारी युगल किशोर जी के संरक्षण व मार्गदर्शन में हो रहा है।


अभी तक "सृजन से" के तीन अंकों में देश के अनेक वरिष्ठ व चर्चित लेखक, रचनाकार व चित्रकार जैसे कि पदम श्री डा० रमेश चन्द्र शाह, पदम श्री डा० यशोधर मठपाल, महेश दर्पण, दयानन्द अनंत, मोहमद सलीम, दिनेश दिवेदी, मंगलेश डबराल, डा० शिव ओम अम्बर, डा० कुंअर बेचैन, मनमोहन सरल, बंधु कुशावर्ती, डा० उर्मिल कुमार थपलियाल, दिनेश सिन्दल, गिरीश तिवारी "गिर्दा", कवि कुलवंत सिंह, मकबूल वाजिद, डा० नन्दकिशोर ढौडियाल, डा० आशा पांडेय इत्यादी अपना लेखकीय सहयोग दे रहे हैं।


बिना किसी के आर्थिक मदद से "सृजन से" के माध्यम से उत्कृष्ट रचनाओं एवं उभरते हुए युवा रचनाकारों को एक मंच प्रदान करने का सराहनीय प्रयास किया जा रहा है।


पत्रिका से सम्बधित विस्तृत जानकारी www.srujunse.blogspot.com पर प्राप्त की जा सकती है। अपनी उत्कृष्ट रचनाऎं "सृजन से" को भेजने हेतु आपsrujanse.patrika@gmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं।

Wednesday, July 21, 2010

"सृजन से"...: जुलाई-सितम्बर २०१० अंक की विशेष सामग्री

"सृजन से"...: जुलाई-सितम्बर २०१० अंक की विशेष सामग्री: "'सृजन से'... 'सृजनात्मक विधाओं की संवाहक' त्रैमासिक पत्रिका जुलाई-सितम्बर २०१० अंक की विशेष सामग्री 'सृजन से पहले' स्तम्भ की शुरुवात भाभा अ..."

Tuesday, July 20, 2010

जुलाई-सितम्बर २०१० अंक की विशेष सामग्री

"सृजन से"... "सृजनात्मक विधाओं की संवाहक" त्रैमासिक पत्रिका जुलाई-सितम्बर २०१० अंक की विशेष सामग्री
"सृजन से पहले" स्तम्भ की शुरुवात भाभा अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक अधिकारी कवि कुलवंत सिंह जी के "लक्ष्य से जीत तक" स्तम्भ से हुई है
साहित्य: डां० सौमित्र शर्मा जी (कानपुर), शराफ़त अली खान जी (रुहेलखन्ड) इत्यादि के आलेख/एकांकी चित्रकला: सुप्रसिद्व चित्रकार बी0 विठ्ठल पर धर्मयुग पत्रिका के सहसंपादक रहे एवं प्रसिद्ध कला क्षेत्रै पुस्तक के संपादक मनमोहन सरल जी (मुंबई) का विशेष आलेख तथा प्रतिष्ठित व युवा चित्रकारों की कृतियां इस अंक मे देखी जा सकती हैं साक्षात्कार- प्रख्यात कथाकार मृदुला गर्ग जी से उनके सहित्य पर दिनेश द्विवेदी जी की लम्बी बातचीत के अंश वातायन स्तम्भ- डा० शिव ओम अम्बर
लोक / संस्कृति: श्रीनन्दा स्तुति की रचना पर हेमंत जोशी जी का लेख व गढवाल के लोक बाल साहित्य पर डां० नन्द किशोर ढौडियाल जी (हिंदी विभागाध्यक्ष- कोटद्वार) का विशेष आलेख
कहानियां- धान सिंह मेहता ' अनजान' जी ( लखनऊ), केवल तिवारी जी (गाजिआबाद) व ओ० हेनरी (विश्व साहित्य से)
गज़लें- ओम प्रकाश खरबंदा जी (देहरादुन) व अशोक यादव जी (इटावा)
कवितायें- घनानंद पाण्डेय "मेघ" जी (लखनऊ), अलोक शुक्ला जी (उ० प्र०), जय प्रकाश डंगवाल जी (हेदराबाद), हरीश बडोला जी (लखनऊ) एवं नये रचनाकारों की कविताये
सामाजिक सरोकार: सुप्रसिद्ध लेखक मकबूल वाजिद जी (म० प्र०) का पर्यावरण पर विशेष आलेख
इसके साथ ही कई नये व प्रतिष्ठित रचनाकारों जैसे नीतू चौधरी जी (मेरठ), सुधा शुक्ला जी (लखनऊ), किरन पान्डेय जी (दिल्ली), हेमचन्द्र कुकरेती जी (पौडी गढवाल) आदि की रचनायें/आलेख इस अंक मे देखे जा सकते हैं
सभी साहित्यकारों,रचनाकारों व कलाकारों से निवेदन है कि पत्रिका के अगले अंको के लिये स्तरीय सामग्री उपलब्ध करायें।
Email id: srujanse.patrika@gmail.comBlog: www.srujunse.blogspot.comपता: एम-3, सी-61, वैष्णव अपार्टमेन्ट,शालीमार गार्डन-2, साहिबाबाद,गाज़ियाबाद (उ० प्र०)

Thursday, July 8, 2010

"Srujan se" in the hand of Agathaa Sangama


"सृजन से" के सभी सहयोगियों को बताते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है की "सृजन से" अप्रैल-जून २०१० अंक को देश की सबसे युवा केंद्रीय मंत्री भारत सरकार सुश्री अगाथा संगमा (पुत्री श्री पी० एम्० संगमा) को भेंट की गयी....बताया जा रहा है की सुश्री अगाथा संगामा ने "सृजन से" के कार्य को सराहा और "सृजन से" टीम के सभी सदस्यों को पत्रिका के प्रकाशन में शुभकामनाये दी.

Monday, July 5, 2010

"सृजन से" feedback from Hem Pant

इस बार "सृजन से" के दोनों अंक एक साथ पढने को मिले. इस सुन्दर पत्रिका को इतने जतन से निकालने के लिये पूरी टीम को मेरी हार्दिक बधाई. "सृजन से" में कहानी, कविता, साक्षात्कार, चित्रकला व अन्य पक्षों को जिस सन्तुलन के साथ सहेजा गया है वह काबिले तारीफ है. मुझे आशा है कि "सृजन से" उत्तराखण्ड के नवोदित लेखकों को सही मार्गनिर्देशन के साथ आगे बढाने का प्रयास करेगा और कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे नये प्रयोगों को भी सामने रखेगा. अगर सम्भव हो तो क्षेत्रीय बोली-भाषाओं पर भी एक स्तंभ नियमित रूप से देने का कष्ट करें. पुनश्च बधाई एवं शुभकामनायें.

--

Thanks and regards
--------
Hem Pant

‘Srujan Se ‘ (Second Issue ): Keeping its Words

Bhishma Kukreti..

When I received the first issue of "Srujan Se" edited by Meena Pande, I sent messages to my Garhwali literature friends that this magazine has high standard and all Hindi literature creative should contribute for this magazine. The second issue is the proof that the editorial board , publisher are sincere in keeping their words.

In her editorial Meena Pandey touched many subjects especially on the rights of women and their contributions to the future society and human beings . Meena explains the main sections of this new issue and also tells the readers for adding two new columns. Meena has been successful in creating eagerness for reading the full magazine in the reader’s mind . However, the new readership expect more from Meena to deliver innovative editorial that opens new thinking in the mind of readers and contributors too , Meena should take stock that editorial is not limited to ‘Lekha Jokha of current issue” but should be able to provoke the readers too.

In reader’s reactions column about first issue , there are responses of renowned literature creative and creative of other fields . Surprisingly no response/reaction is stereotype.

Mahesh Chandra Pande is successful in explaining the spiritual or philosophical aspect of power of mind and need of implementation in ’Man Ke Jite Jeet hai” through simple and understandable words.

Stage play is still a way of communication and communicating messages to the communities. Learned research scholar Lalit Singh Pokhariya tells us the aspect of Love, Shringar rapture in various world famous plays inhis interesting article “ Naty Sahity me Prem’

The title “ Masijivi Amrit Lal Nagar krit ‘Shatranj ke Mohre ki Ardh Sati’ is very useful for younger literature creative for knowing the importance of sensitivity of the literature creative in creating classic and relevant literature.

In ‘Holi ke Rang’ article, Dr Santosh Ashish is triumphant in creating Kumauni Holi play imagery and Holi celebrations in other parts of India.

The article ‘ Vachik Kvita banam Kavita’ is meant for literature creative and the common readers will also enjoy the article.

I like (the most) the interview of Dr yashodhar Mathpal taken by Hemant Kumar Joshi and by reading the struggle of Math pal, I can say that struggle seems be a min creature before the success of Padm Shri dr Yashodhar Mathpal, The interview is inspiring to we all too .

I admire Dr Jeewan singh Mehta for his article “ Paryavaran avam gramin Mahilaon Ka Swasthy Uttarakhand ke Sandarbh me “ wherein he tells us scientifically the facts and importance of health care for rural Uttarakhandi women and he tells us the solutions too.

Meean pande should be congratulated for providing opportunities to young generation. Yong research scholar Geeta Pandey explains the various aspects of Indian culture in her ‘ Adhunik Paripekhs me Sanskriti ka Mahatva”

Dr Bhusan shau ‘s language is very simple and understandable too that readers will understand the finer points of Art in his article ‘ Kala me Saundary Tatv’

The readers will get primary knowledge about books jindagi Ki Jang by Puran Kandpal, Jainendra ki Kalyani by Dr Rama Nath Tripathi , and Hindi film Sangget : 75 Varson ka Safar by Anil Bhargav.

Daya Nand Anant is famous for his realistic stories of common men and the readers will like story telling expertise of Anant in his story ‘Rupayun ka Ped ‘.

The intellectuals will definitely like and enjoy the ‘landscape’ story by dr Ramesh Chandra Shah

There is famous story of Chekhav in this issue and seems that editorial board wants to create international image of the magazine.

There are pomes and ghazals of Magesh Dabral, Dr shiv Om Ambar, Kunvar Baichain, Urmil Thapliyal, Soni Pant, Dinesh singhal, Dr Jagdish Pant kumud. Each poem is different than others in temperaments, raptures, and styles etc . The selection of poems shows that editor is bent upon about searching the base of relevancy of poems in globalization time.


The paintings of Dr Yashodhar math pal will take you to old rural Kumaun of old age
The get up of the magazine is soothing to eyes.


I can say that the readers will enjoy the issue and will definitely wait for another rissue.

I recommend you all to call the magazine.

Srujan Se (Tri monthly Hindi Magazine)
M-3 M I G Flat, C -61
Vaishnav apartments, Shalimar Garden-2,

Sahibabad, Ghaziabad (UP)
Pin 201005,


Dhanyabad
Regards
Bhishma Kukreti

सृजन से par ek नज़र

सृजन से अंक २ (अप्रैल-जून २०१०) प्राप्त हुआ. प्रवेशांक पर दिए गए कुछ सुझाव इस अंक में समाहित करने के लिए साधुवाद. अभी विद्यार्थियों एवं उत्तराखंड की खुसबू पर आपको मंथन करना है. ५२ पृष्ठ के इस अंक में सभी प्रकार के पाठकों का ध्यान रखा गया है. पद्मश्री डा.यशोधर मठपाल का सग्रहालय मैंने जून २००२ में देखा है.
डा मठपाल के बारे में सृजनसेने पाठकों की जिज्ञासा तृप्ति की है. डा साहब के शब्द ' विदेश में किसी के कार्य को मान्यता मिलने पर हमारी नीद खुलती है', 'जो अ-सरकारी होता है वही असर-कaरी होता है', 'कला का आत्मा से जुडाव होता है', '७२ वर्ष की आयु में स्वयं को २७ का समझताहूँ', 'गाँधी दर्शन आत्मशुद्धि और आत्मसंतोष के लिए बहुत बड़ी चीज है', ह्रदय को छू जाते हैं. मादक द्रव्यों तथा निहित स्वार्थियों को अपनी चित्रकला से दूर का उनका संकल्प समाज के हित में है. डा मठपाल अपनी दिव्य सोच ,त्याग , तपस्या और निरंतर परिश्रम से ही हमारे प्रेरणास्रोत बने हैं.
'सृजनसे ' में डा जीवन सिंह मेहता का सामाजिक सरोकार भी आत्मसात करने लायक है. सुतर ही नहीं पीरुल लाने में ही पहाड़ की नारी का जीवन चला जाता है. कहीं कहीं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या डिस्पेंसरी हैं पहाड़ में परन्तु वहां न कर्मचारी हैं न दवा. कुछ भी नहीं मिलने के कारन लोग वहां जाने से कतराते हैं. गीता पाण्डेय के लेख में होली-दीपावली के प्रदूषण पर भी चन्द शब्द होते तो अच्छा था. आज जहाँ होली शराब और रासायनिक रंगों से प्रदूषित हो गयी है वहीँ दीपावली पटाखों और मिलावट की चोट से जख्मी हो गयी है. अब परम्पराओं को बदलने का समय आ गया है. विसर्जन के नाम पर नदियाँ नालों में बदल गयी हैं. अब हमें जल-विसर्जन की जगह भू-विसर्जन का नारा देना होगा. हम भावी पीढी के लिए ऐसी दुनिया न छोड़ें जिसमें जल, वायु और पृथ्वी पूर्ण रूपेण प्रदूषित हो गयी हो.
'जिंदगी की जंग' की समीक्षा के लिए केवल इतना ही कहूँगा कि संपादक मीना पाण्डेय ने सभी कहानियों को पढ़ा ही नहीं चबा डाला. डा. बेचैन और दिनेश सिंदल की गजलें ' सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए' और 'समंदर इसलिये खारा हुआ है' बहुत कुछ कहती हैं. झूसिया की गमक , गुणानंद की झलक, सोनी पन्त की अभिव्यक्ति , उर्मिल की सभ्यता, नीमा की मांसी, मयंक की होली , संपादक की पाती, महेश पाण्डेय की मन की जीत, पोखरिया का नाट्य प्रेम, अनंत का रुपियों का पेड़, कुशावर्ती का नागर स्मरण , डा. आशीष की रंग में दहशत, डा. शाह का कल इसी कागज पर... सभी पढनीय एवं मनोरम हैं. डा. अम्बर का कवियों का वर्गीकरण तथा मंतव्य और गंतव्य का सन्देश अच्छा लगा. पाशा की बिलख बिलबिला देती है, डा. कुमुद के सयाने लोग खूब लूट रहे हैं. नितिन जोशी की सृजन परिक्रमा अच्छी लगी . हेमंत जोशी एकाध गीत का मुखड़ा भी देते तो अच्छा होता. डा. साहू का कथन 'सृजन' कलाकार का स्वाभाविक गुण है, अकाट्य सत्य है. और अंत में भारत किस दिन अपनी भाषा में बोलेगा पर इतना ही कहूँगा कि १४ सितम्बर से पहले और बाद में भी यदि हम मंथन जारी रखें तो एक दिन हम अवश्य अपनी भाषा में बोलेंगे . अंग्रेजी नहीं जानने वालों द्वारा अंग्रेजी में विवाह कार्ड छपाना एक 'शान ' बन गयी है, ekdam झूठी शान.

Sahityakaar
Puran Chandra Kandpal
Rohani, New Delhi

Srujan Se : A Magazine of High Standards- By Bhishma Kukreti

My web-friend Shri Kaliash Pandey from Noida was good enough to post me a magazine and I received a copy of recently published tri-monthly Hindi magazine Srujan Se (January-march 2010)

By just glancing the cover page I could not believe that the magazine is Uttarakhand region oriented literature magazine or Uttarakhand Sambandhi Anchlik Patrika. Financially and distribution point of view, it is very difficult for the publisher to publish high standard literature magazine related to Uttarakhand .

I congratulate to editor MS Meena Pande , "Srujan se" team and specially Shri Kailash Pande for taking pain to publicize and distribute such high class magazine .

Meena Pande successfully explains the real meaning of creativity pregnancy and the objectives of creativity of any type regarding literature and art. In less words she said enough and proves her editorial expertise.

K Pande explains us the importance of right decision at right time

The renowned artist and creative Mohamad Salim does need not any introduction and very sensitively, in simple language he is successful to explicate the emotional point of view and creative point of view of art or literature. He inhis article “ Kala ke vibhin Ayamon se …“ , deliberately touched many minute aspects of art, literature and the audience or readers.

Kiran pande very sensitively takes us in the romantic mood in the poetry of Sumitra nandan pant in his essay “ Saundary Upasak Pant”

Hem Chandra Bahuguna analyze brilliantly the characters of women in the novel ‘Kasap ‘ written by late Manohar Shyam Joshi

The stories in this first volumes indicate that the editorial board and publisher will provide the readers best stories (mostly related to Uttarakhand or Uttarakhandi story tellers”. After thirty two years I am reading the high standard stories written by Uttarakhand writers in lot. Cheed ke banon se “ a collection of stories written by writers as shivani, Himanshu Joshi, Ballabh Dobhal, Shailesh matiyani, Batrohi Swaroop Dhoundiyal etc edited by Swaroop Dhoundiyal . The stories of Mahesh darpan, Lalit Mohan Thapliyal , Puran Mathpal, Dr Sher singh Bisht, and Meena Pande attract the readers for waiting another issue of Srijan Se

I was delighted to read the wordings of famous Hindi story teller, editor and versatile critic Illa Chandra Joshi after so many years. Ila Chandra joshi tells us the his memories of his friend great Hindi poet Surya Kant Tripathi ‘Nirala’ . As per his expertise Joshi writes memories of Nirala in such a way as if we are watching movie.

The interviews with famous writer Amrita Preetam and social activist and folk musician Naima Upreti are the marvelous interviews for knowing the insight and experiences of the interviewed ones .

Hemant Joshi enlightens us about the works of famous dramatist Brij Mohan Shah in the field of drama

The research oriented essays of Dr Y S math pal on Wood Carving Art of Kumaon, the interrelationships of classical music with folk music and songs by Dr Asha Pande, are definitely excite the readers for knowing so much details. Same way, Rajesh c Joshi provides us the importance and characteristics of folk music instrument Dhol and Deepa Joshi details the legendary tales of Uttarakhand and their effects on our society for creating exclusive culture of Uttarakhand .

Chetan Kumar Pande tells us about Gangotri in ‘ jahan ganga man Avtarirt Hui ‘ though travelogue style .

There are critical essays on three books of different subjects related to Uttarakhand, Uttarakhandis and languages of Uttarakhand -’ Pant saihitya…”. Pandit Jyoti ram ‘ and Kumaoni Ramayan’.

The editor choose marvelous Gazals of Dr Shiv Om Ambar, Shankar Prasad kargeti, Meena Pande and could be said that in the time of tension of competition , Gazals sooth the readers the poems of Chandra Sekhar pant, Neeraj Babadi, Deep Pant, Tara datt Pande, Sushil Joshi, Puran Mathpal, and Mo.Ali Ajnabi are of different mood, diverse subjects, varied emotions, poles apart forms. After eading the pooems, readers will mutter that till the human beings have emotions , the poems can not die and readers will not leave reading/listening poems

The initial issue of magazine also deals with burning social issues of human kind in articles ‘ Hari Bhari Duniya by Tara Datt Pande and ‘ Chamardumra ki Byatha’ by Dr V K Joshi . Both the articles compel the readers for thinking about environment and the ruining of villages in Uttarakhand due to many reasons.

The readers also enjoy the small life sketch of Magsaysay Awarded Deep Joshi .

The magazine has maintained a high standard in all aspects of magazine I.e subjects, form , other aspects of involvement of readers and readers feeling high after reading the magazine

Certainly, I shall request all Uttarakhandis for sponsoring the magazine by all means.

Editor Srujan Se

M-3 MIG Flats, C 81

Vaishnav apartment, Shalimar Garden II

Sahidabad, Ghaziabad (Uttara Pradesh 201005

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Email---

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Copyright: Bhishma Kukreti , Mumbai, Shiv Ratri February


Dhanyabad

Regards
Bhishma Kukreti

Srujan Se Feedback from Kavi Kulwant Singh Ji....

इतने बड़े राष्ट्र में राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक पत्र, पत्रिकाओं की नितांत कमी है. जिसकी कमी साहित्य से जुड़ा हर व्यक्ति महसूस करता है. लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर, छुटपुट स्तर पर अनेक साहित्यिक पत्रिकाएं उभर कर आई हैं. जिनमें से कई साहित्यिक दृष्टि से उच्च कोटि की भी हैं. लेकिन उनका प्रचार प्रसार बहुत कम यां सीमित है. क्योंकि यह प्रयास अधिकतर व्यक्तिगत तौर पर हैं. इनमें से कुछ पत्रिकाएं हैं - साहित्य क्रांति, कुतुबनुमा, संयोग साहित्य, दमखम, कथा बिंब इत्यादि.


’सृजन से’ पत्रिका भी इसी दिशा में एक उत्कृष्ट प्रयास है. पत्रिका उच्च कोटि की है. लेकिन पत्रिका से जुड़े सभी सदस्यों एवं एवं संरक्षकों को यह विशेष प्रयास करना होगा कि यह पत्रिका साहित्य की दृष्टि से उच्चकोटि की तो रहे ही, साथ ही यह राष्ट्रीय स्तर की भी हो; भले ही पत्रिका का एक खंड क्षेत्रीय स्तर पर समर्पित हो. पत्रिका से जुड़े सभी सदस्यों को मेरा साधुवाद एवं अनेकानेक बधाईयां. पत्रिका का इंटरनेट प्रतिरूप भी
भविष्य में अगर संभव हो तो अवश्य लायें.

शुभकामनाओं सहित...


आपका शुभचिंतक
कवि कुलवंत सिंह
वैज्ञानिक अधिकारी
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई