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Monday, September 27, 2010

feedback from JP dangwal ji

सृजन से का जुलाई-सितम्बर अंक मिला, पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई।

चित्राकला स्तंभ में संघर्षशील, महान मूर्तिकार वाडगेलवार विट्ठल का जीवन परिचय अत्यंत प्रभावकारी लगा। लेखक और कलाकार संवेदनशील होते हैं और अपनी रचना में प्रेम का साकार स्वरूप प्रतिबिम्बित करना ही उनका लक्ष्य होता है। श्री विट्ठल जी ने अपना वह स्वप्न तो साकर किया लेकिन स्वयं की कृतियों का प्रिय पत्नी प्रभा जी की कृतियों से प्रतिस्पर्धा न हो यह सोचकर उनके हित में उन्होंने अपनी कृतियों की प्रदर्शनी ही बंद कर दीं। प्रेम का ऐसा अद्भुत उदाहरण बहुत कम देखने, सुनने और पढ़ने को मिलता है। श्री मनमोहन सरल जी को आदरणीय श्री विट्ठल जी का यह मनोरम जीवन परिचय लिखने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

किरण पांडे जी का महान साहित्यकार श्री भीष्म साहनी जी पर लेख अत्यन्त सारगर्भित लगा। भीष्म साहनी उस कोटि के साहित्यकार हैं जिन्होंने तिल तिल जल कर अपनी आभा से हिन्दी साहित्य जगत को आलोकित करने में विशेष योगदान दिया है। साथ ही दिनेश जी का साहित्यकार मुदुला गर्ग जी से विस्तृत साक्षातकार लेखिका के मन में झांकने का अवसर देता है। नीतू चौधरी का अवध की आत्मा वाजिद अली शाह पर लेख भारत के अंतिम बादशाह की याद तरोताजा करता है।

राम काव्य के मर्मज्ञ डाक्टर रमानाथ त्रिपाठी पर डा. साौमित्रा का लेख त्रिपाठी जी की राम काव्य पर गहरी पकड़ और उनके ज्ञान को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है।

पत्रिका में छपी सभी कहानियां, रूपांतर और कविताएं रुचिकर लगीं। चेतन पांडे जी की, चंद्रशेखर जी के काव्य संग्रह अरी सुनयना की झलक अति प्रिय लगी, पुस्तक प्राप्ति का पता बताने का कष्ट करें, पुस्तक खरीद कर पढ़ना चाहूंगा। संपादक महोदया आपकी कविता पहली बार पढ़ने को मिली। कब आओगे पढ़कर आप में मुझे महादेवी जी की झलक देखने को मिली। आशा है कि आप इस झलक को वास्तविक स्वरूप देने का प्रयत्न करेंगी।

पत्रिका में सृजन परिक्रमा आरम्भ कर आपने पत्रिका की गरिमा और भी बढ़ा दी है।

मेरे छात्रा जीवन में डी,ए,वी, कौलेज में श्री उर्मिल थपलियाल एक लोकप्रिय युवा नेता रहे हैं। मेरा उनसे व्यक्तिगत परिचय नहीं रहा है लेकिन उनमें एक सफल साहित्यकार और एक सफल नेता की छवि मेरे मन में रही है। वह राजनीति से कैसे विमुख हो गए यह जानना चाहूंगा। आपकी पत्रिका में इस विषय पर लेख पढ़ने को मिले तो रुचिकर होगा।

इसके साथ ही आपकी सुव्यवस्थित, सुशोभित, सुसुसंस्कृत, सुसंयोजित, सुसंपादित साहित्यिक पत्रिका सृजन से के मंगल मय भविष्य के लिए हार्दिक

शुभकामनाएं।

जय प्रकाश डंगवाल।


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