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Thursday, December 2, 2010

Feedback from Bhagwat Prasad Misra 'Niyaj' Ji....

‘सृजन से‘‘ का जुलाई-सितस्बर 2010 अंक प्राप्त हुआ। साहित्य के क्षेत्र में इस नई पत्रिका का स्वागत है। स्त्री विमर्श से सम्बन्धित मृदुला गर्ग जी के उठाये मुद्दे विचारणीय हैं। आज नारी सेसम्बन्धित हमारा समाज हमारी संस्कृति और हमारा साहित्य संक्रमणकाल से गुजर रहा है। इस सब में नारी की भूमिका क्या और कितनी हैं, इसका निर्णय स्वयं नारी को ही करना होगा। इस संबंध में मुझे एक पौराणिक प्रसंग याद आता है। सती अनुसूया की तपस्या से घबराकर उनकी परीक्षा लेने हमारे त्रिदेव-ब्रहमा, विष्णु और शिव पहुँचे और उनसे निर्वस्त्र होकर उनके सामने उपस्थित होने को कहा। अनुसूया ने अपनी तपस्या के बल पर उन्हें हंसते खेलते शिशुओं में बदल दिया और मातृस्वरूप उन्हें निर्वस्त्र रिझाने लगीं। त्रिदेवों ने उनसे क्षमा मांगी और माता के रूप में उनका नमन किया। तो मीना जी हम आज भी जहाँ इस शक्ति के दर्शन करते हैं। मस्तक अपने आप झुक जाता है। पत्रिका के सभी स्तम्भ अत्यंत उपयोगी और रोचक हैं। आप यदि चाहें तो अध्यात्म पर भी एक स्तत्भ रख सकती है.

भागवत प्रसाद मिश्र ‘नियाज’
अहमदाबाद (गुजरात)

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